Thursday, 7 April 2016

Sakshi


परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी
सहजयोगियों से बातचीत के अंश, दिल्ली 1976
मैंने आप लोगों से कहा है कि सहज योगी के लिये साक्षी स्वरूप होना अत्यंत आवश्यक है। साक्षी स्वरूप होने की शक्ति शांत होती है.... यह बोलती नहीं है। यदि आप वाचाल व्यक्ति हैं तो इससे आपको कोई विशेष मदद नहीं मिलने वाली है। आपको संतुलन में रहना होगा। इस अवतरण में पहली बार मैंने बोलना प्रारंभ किया है और इससे मुझे काफी परेशानी भी होती है क्योंकि मुझे इस प्रकार से बातें करने की आदत नहीं है। अतः आप लोगों के लिये आवश्यक है कि जब तक आपको बात करने का मन नहीं है, आप बातें न करें। और अगर करनी भी पड़े तो मात्र कुछ वाक्य ही बोलें। मैंने पहले भी आपको बताया है कि आपकी ज़ुबान सभी अंगों से अधिक शक्तिशाली होती है। यदि आप इसपर नियंत्रण रखना सीख जांय तो एक प्रकार से आप सभी चीजों पर नियंत्रण रख सकते हैं। क्योंकि सभी चीजों को सुंदर या सुस्वादु होना चाहिये। जीभ इसका ज्ञान देती है। यदि आपको कुछ खाना है और यह स्वादिष्ट नहीं है तो आप उस भोजन को खाना नहीं चाहते। इसको स्वादिष्ट होना चाहिये। फिर आपके विचारों को भी सुस्वादु अर्थात सुंदर होना चाहिये। अतः निर्णायक कारक तो जीभ ही है। जीभ की जड़ें विशुद्धि चक्र तक जाती हैं जो आपके अहं और प्रति अहं को नियंत्रित करती हैं या आप ऐसा भी कह सकते हैं आपके अहं व प्रतिअहं आपकी ज़ुबान से प्रदर्शित होते हैं। जब आप बोलते हैं तो कोई भी जान सकता है कि आप अहं या प्रतिअहं के आयाम में हैं। वही अभिव्यक्त करती है और वही निर्णय करती है। परंतु यदि आप उसे जानते हैं तो आप यह भी जानते हैं कि उसको किस प्रकार से नियंत्रित या संचालित किया जाना है। वह आपकी मित्र है और स्वयं सरस्वती मां आपकी जिव्हा पर विराजमान रहती हैं। यदि आप अपनी जिव्हा पर नियंत्रण रखना जानते हैं तो सहजयोग काफी ऊंचाइयों तक पंहुच सकता है। क्योंकि जब लोग आपसे सहज योगियों के रूप में मिलते हैं तो वे यह भी देखते हैं कि आप किस प्रकार से बात करते हैं..... किस प्रकार से खाते हैं। यह सब आपकी वाणी द्वारा ही निर्धारित होता है।
यदि आप अत्यंत अधिक विकसित अवस्था में है तो आपको देखकर हैरानी होगी कि यदि आप कुछ खाते हैं और यदि यह आपके लिये हितकर न हुआ तो आपकी जिव्हा तुरंत उसे बाहर फेंक देती है...... वह आपको उसे खाने नहीं देगी। यदि आपको किसी गलत व्यक्ति द्वारा दिया हुआ प्रसाद खाने को दे दिया जाय तो आपकी जीभ उसे तुरंत बाहर फेंक देगी........ वह उसे खा ही नहीं पायेगी। यदि फिर भी आपने कुछ खा ही लिया हो तो आपकी जीभ आपके मस्तिष्क को सूचित कर देगी कि इस खाने को बाहर फेंक दो..... यह आपके लिये रूचिकर नहीं है। अतः विष्णु का कार्य पेट से होकर श्री कृष्ण तक ...... जो एक ही हैं ...... सब आपकी जीभ से किया जाता है।
आपको मालूम होना चाहिये कि आपकी जीभ को कितना पवित्र व कितना शुद्ध होना चाहिये। जब आप अपनी मां का नाम इस जिव्हा से लेते हैं तो इसको पवित्रतम होना चाहिये। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आप किस प्रकार से अपनी जीभ का प्रयोग करते हैं। जो लोग अत्यंत मुंहफट होते हैं वे उन्हीं लोगों जैसे होते हैं जो अत्यंत मीठी जुबान में बातें करते हैं। वे आपसे कुछ बातें निकलवाने के लिये इतनी मीठी ज़ुबान में बात करते हैं। जैसा कि मैंने बताया कि यह अहं व से को नियंत्रित होती है। सहजयोगियों को मालूम भी हैं कि विशुद्धि पर साक्षी भी वहां हैं। अतः आपके साक्षी भाव की शक्ति भी आपकी जिव्हा के अनुसार घटेगी और बढ़ेगी।
निसंदेह यह 16 सबप्लेक्सेज को भी नियंत्रित करती है..... परंतु यह आंखो की मांसपेशियों पर भी नियंत्रण रखती है..... यह सभी मांसपेशियों पर नियंत्रण रखती है...... यह तालू, दांतो व कानों की मांसपेशियों पर भी नियंत्रण रखती है। लेकिन यहां यदि आप कुछ सुनते हैं तो आप उसको नियंत्रित नहीं कर सकते परंतु जीभ को नियंत्रित कर सकते हैं। क्योंकि जीभ से निकलकर बात बाहर जाती है पर कानों से आप किसी को कुछ नहीं दे सकते। यह एक तरीका है..... यह दुहरा तरीका है कि आप कुछ ग्रहण करें और उसे बाद में फेक दें। इसका दुहरा उद्देश्य है.... यह अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है....... और इसालिये हमें अपनी जीभ की देखभाल करनी चाहिये।

परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मला देवी
सहजयोगियों से बातचीत के अंश
दिल्ली 1976 (1976-0402)

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