Wednesday, 29 March 2017

21 steps

The 21 Essential Steps (Nirmala Vidya) Self Realization Kundalini Awakening - HH Shri Mataji Nirmala Devi founder of Sahaja Yoga Meditation. Step 01 - Recognising Shri Mataji by experiencing our own divinity Step 02 - Establishing ourselves in SY through meditation Step 03 - Criticism spoils the joy of creation Step 04 - Importance of Regular Cleansing Step 05 - Giving-up anything that goes against the Spirit Step 06 - Learning SY by listening to Shri Mataji Step 07 - Establishing Shri Ganesha Tattwa within Step 08 - Refraining from getting into the clutches of Ego and Conditioning Step 09 - Abstaining ourselves from ritualism & fanaticism Step 10 - Understanding the Maryadas of Relationships in SY Step 11 - Understanding the essence of life in Sahaja Ashrams Step 12 - Making serious efforts towards rectification of our own problems Step 13 - Accepting our faults without reacting Step 14 - Participating regularly in Sahaja Programmes Step 15 - Making no excuses for our own shortcomings Step 16 - Becoming worthy of being in the realm of Sahaja Yoga Step 17 - Gossiping is the greatest enemy to the collective Step 18 - Becoming Generous Step 19 - Giving-up our mental concepts before vibrations Step 20 - Abiding by the Golden Rule of Sahaja Yoga Step 21 - Developing sense of highest priority towards SY

आरसा

मी आरशात स्वत:ला हल्ली कधी पाहत नाही
चार कोनाच्या फ्रेममध्ये अडकून राहत नाही
फसवे रुप त्यात माझेच हसवते फसवते मला
उगाच माझ्याच फसव्या जगात मी अडकून जात नाही

डाॅ. शैलेश कुमार सहजयोगी 🌎😇

Sunday, 12 March 2017

अमृतजल

*मेरा अविस्मरणीय अनुभव*

"अभी मैं *द गोस्पेल आॅफ जाॅन* चित्रपट में *येशु भगवान को जल द्राक्षरस में परिवर्तित* करते देख रहा था.. तभी मुझे एक घटना जो मेरे साथ घटित हो चुकी है याद आई..
*2007 या 2008 साल* के करीब मैं सहजयोग कार्य में काफी व्यस्त रहता था.. जब मैं लाईफ इंटर्नल ट्रस्ट के आॅफीस कुछ काम संदर्भ में गया था तब वहां के एक स्टाफ ने मुझे नजदीक बुलाकर मेरे कान में कहा.. *यह श्री माताजी ने आपके लिए भेजा है..*
और हाथ में एक *पानी की बोतल* थमा दी..

मैंने पहले भी यह अनुभव किया था.. जब कभी *श्रीमाताजीं पुजा के पश्चात जिस निवासस्थान में ठहरती*.. हम वहा जा पहुचते थें..

किंतु मिलने की इजाजत न होने के वजह से हम बाहर गेटपर माँ के निवासप्रती देखते ध्यान करते.. तो *कभी कुछ खाने के लिये और कभी पिने का पानी माँ अंदर से भेजा करती*.. और हम उसका आनंद उठाते..

लेकिन इस वक्त बात कुछ और थी.. उस बोतल को में घर ले आया.. माँ का आभार मानते हुए उस जल को मुंह से लगाया और *पहले ही घुंट में कुछ जबर्दस्त महसूस हुआ*..
मानो.. बोतल का ढक्कन नहीं *सहस्त्रार का ढक्कन खुल गया हो और इतने जोर से चैतन्य सहस्त्रार से बहने लगा की.. समय और विचार दोनों थम गये हो*..

यह अवस्था पुरे दिन के लिए घटित हो रही थी..
उसका *स्वाद लिंबु के रस समान* था.. बाद में पता चला कि वह अमृत *माँने अपने हाथो से भोजन पश्चात बनाया था*..

और जब जब में वह अम्रृतजल पीता.. समान अनुभुती होती थी.. बाद में हमारे सेंटर को यह बात उस लाईफ इंटर्नल आॅफीस स्टाफ से पता चली और मैंने वह बाकी *आधी बोतल सेंटर में देदी*..

इस घटना के बाद मेरे व्यक्तिगत जिंदगी में काफी तकलीफे आई.. लेकीन *श्री माताजी के कृपा से उनके उपर का विश्वास हमेशा बना रहा. और सभी तकलीफे आनंद में परिवर्तित होने लगी*..

श्री माताजी.. *आपने हमें.. हम सबको अपना पुत्र चुना इसलिए हम आपके पुर्ण ह्दय से ऋणी हैं.. आपके कार्य तथा स्वप्न को पुरा करने की हमे क्षमता प्रदान करें..*

अनुभवीत..
*डॉ. शैलेशकुमार सहजयोगी.😇*