हवन की सम्पूर्ण विधी तथा मार्ग दर्शन .
वातावरण , चक्र , देश के शुद्धि करण , विविध देव देवताओं के लिए हवं किया जाता है !
सहजयोग में कलेक्टिव हवंन निम्न लिखित स्थिति और तिथि ,उत्सवो में किया जाता है .
1) होली ,2) नवरात्र में , षष्ठी ( सातवा दिन ),सप्तमी, या फिर अष्टमी के दिन किया जाता है , अष्टमी के हवंन का काफी महत्त्व है .3) नए घर के गृहप्रवेश के समय 4) किसी भी सहजयोगी को अपने घर को , अपने आप को , परिवार को समस्या मुक्त , बाधा मुक्त कराने के लिए अनुमति से हवन किया जाता है .
** हवन जब जी चाहे तब करने की वास्तु नहीं है , याद रखिये अगर घर में हवं करना है तो आप को काफी पहले तय करना होगा ओउर हवं के दिन तक आप की तथा घर के , सहज्योगियो की स्तिथि ध्यान , मैडिटेशन करके उच्चतम करनी होगी ताके वे लोग हवन का लाभ एवं चैतन्य को ग्रहण कर सके .
हवन के लगने वाली सामग्री .
1) हवनकुंड बनाने के लिए मिटटी की इटे ( विशेष ध्यान दे के हवं कुंड का आकार कच्छुए ( तोर्ताईस ) जिसे मराठी में कासव या कुर्म कहते है .) हवनकुंड के तल में रेत या भाड हो ( रेत हमेशा काली होती है भाड याने समंदर या गंगा के किनारे मिलाने वाली पिली रेत ) 2) रंगोली , हल्दी , कुमकुम , अक्षता ( चावल पानी धोनी है ) 3) एक नारियल , पांच तरह के मीठे फल ( संतरा नहीं लेना है या कोई भी खट्टा फल नहीं लेना है ) सात तरह के सूखे मेवे ( काजू बादाम किशमिश / किशमिस को मराठी में मनुका कहते है ,सूखे नारियल तुकडे ,सुखा खजूर जिसे छुँवारा और मराठी में खारिक कहते है , पिस्ता ,अंजीर , 4) सुखी लकडिया ( ध्यान दे लकडिया विशेष तौर पे कटहर मराठी में फणस, या आम,काजू ,अर्जुन ,साग , साल ,देवदार, चन्दन इन्ही वृक्षों के हो ये सभी वृक्ष देवगण के है ) गाय के सूखे गोबर के गोल उपले ( रोटिया ), 5) कापुर , गाय का शुद्ध घी ,6 )नौ तरह के साबुत धान ( पूरी सामग्री 3 किलो )= काले उरद , काला चना, लाल चना या छोले ,मुंग , मसूर , चवली , मटकी ,राजमा ,इ .ये सभी धान अलग अलग कटोरे में रखे तथा सफ़ेद और काले तिल ,आजवाइन ( मराठी में ओवा ) लोभान , गुग्गुल ,चन्दन पावडर 7) हवन की जलाने की समग्री जो बाजार में एकत्रित थैले में मिलाती है एक बेल फल घी में रखकर अलग रखे , हवन का भात या खीर ( चावल दूध में उबला हुआ ) 9) हवन में जलाने हेतु अलग अलग तरह के फुल , 10 ) हवं कुंद के अन्दर स्वास्तिक की रंगोली बनानी है तथा हवं कुंद को बाहर से चारो तरफ से 7 रंगों की रंगोली बनानी है 11) प्रसाद के लिए चने गुड 2 आधी कटोरी सूखे नारियल इ .
विधि :=
1 सर्व प्रथम सभी सामग्री अलग अलग कटोरों में भर कर हवं कुंड के आस पास ही रखिये, श्री माताजी के सभी प्रतिमाओं को फूलो की मालाये पहनाये तथा परतिमा के सामने एवं हवन कुंड के सामने घी के दिये जलाए .
2 दो विवाहित स्त्री पुरुष या चार व्यक्ति जो पहले से तय किये गए हो उन्हें हवं के लिए बिठाये ( यदि हवं घर में है तो घर के मुख्य करता स्त्री पुरुष एवं एनी सदस्य हवं के लिए बैठे तथा केंद्र के चलाक या किसी अन्य किसी सहज योगी को भी बिठाए ) हवन में आने वाले तथा हवं करने वाले सभी लोग मैडिटेशन कर के ही शामिल हो जाए .
3 एकत्रित बंधन लेके तीन महामंत्र , गणेश मन्त्र के बाद 1-2 मिनट का ध्यान करके श्री गणेश अथार्व्शिर्ष बोले .
4 हवं कुंड में सबसे पहले फुल डालने है तथा वे डालते हुए निम्न मंत्रो का उच्चारण करे .
*( ॐ त्वमेव साक्षात श्री _______________नमो नम:*
श्री हवन देवता
श्री स्वाहा देवता
श्री स्वधा देवता
श्री अग्नि देवता
श्री पंचमहाभूत देवता
श्री नवग्रह देवता
श्री अष्ट द्विक्पाल देवता .
श्री वास्तु देवता .
हवन कुंड में सबसे पहले उपला ( गाय के गोबर की रोटी ) रख कर उसपर कापुर जलाकर हवं कुंड प्रज्वलित करे उसमे कुछ सुखी लकडिया डाले
अग्निदेवता का मन्त्र बोले .
** फिर प। पु। श्री माताजी के 108 नाम लेके अंत में स्वाहा लगाकर सभी वस्तुओ को अग्नि में समर्पित करते रहे यह करते वक्त दाहिना हाथ ( राईट / उजवा हात ) सहस्त्रार से 3 बार गोल घुमाकर हवं कुंद की तरफ डाले .
( प्रसाद , उबला चावल सुखा मेवा ,आजवाइन , काले -सफ़ेद तील , लोभान तथा चन्दन पावडर सबसे अंत में समर्पित करनी है )
***नवरात्र में की जाने वाले हवन में महाकाली के 108 नाम लेने है .
*** इसके बाद सभी सहजयोग के उत्थान में आड़ आने वाली बाधाये , देश की समस्याए स्वयम की बाधाये, इत्यादि स्वाहा करे . और अंत में ऊपर बतायी गयी वस्तुए हवं कुंद में सपर्पित करे .
** पूर्णाहुति का मन्त्र बोलते हुए घी को तिन बार हवं कुंद में डाल दे अंत: घी में भिगोया बेलफल समर्पित करे .
$$ पूर्णाहुति मन्त्र :- ॐ अग्नेय स्वाहा ! ॐ अग्नेय स्वाहा ! ॐ अग्नेय स्वाहा !
ॐ तत्सत ! ॐ तत्सत ! ॐ तत्सत !
ॐ पूर्णमद:पुर्नमिदम पुर्नापुरन्म्युच्यते !
पुर्नस्य पुर्नमदाय पुर्न्मेवावशिश्यते
ॐ शान्ति: ॐ शान्ति: ॐ शान्ति:
अंत: 3 महामंत्र एवं आरती करे .
पूर्णाहुति के पश्चात कोई किसी भी तरह की आहुति नहीं दे सकता है , नही कोई हवं कुंद के राख को हाथ लगाए .
हवन के दुसरे दिन सम्पूर्ण राख, हवं कुंड पे राखी फल फुल माये तथा एन्य सभी वस्तुओ को समेत कर जल में बहा दे .
** महाराष्ट्र के सभी पूजाओ में सभी हवनो के समय 5 स्त्रियों द्वारा श्री माताज़ी की 'ओटी' भरी जाती है जिसमे हरी साडी , नारियल , चावल , हरी चुडिया ,सुखा मेवा , फल जैसी चीजे श्री माताजी को समर्पित की जाती है .
** हवंन से पहले चरण पूजा कर रहे हो तो श्री सूक्त और देविसुक्त का पाठ अवश्य करे .
** हवं का भोग लेने हेतु यक्ष , दानव राक्षस , किन्नर देव , वसु , गन्धर्व इ सभी आते है , इसीलिए ये जरुरी है के आपका चित्त किस तरह है और आप कितने हृदयपूर्वक हवं कर रहे है , सहजयोग के सभी हवन जिवंत स्वरुप है इसीलिए हवंन का भोग किसे जाता है ये सर्वत: आप पे निर्भर है ध्यान रखे भोग श्री माँ को अग्नि स्वरुप में ही जाए ना के किसी दानव यक्ष को ( सभी सहजी ध्यान मैडिटेशन करा के ही जाए हवं की जगह पर किसी भी मृत व्यक्ति की फोटो ना हो ).
**सहजयोग कैजुएल नहीं है बहोत सारे सहज योगी कहते है चल जाएगा चल जाएगा पर ये गलत धारणा है हवन जल्द से जल्द चालु करे दोपहर के दो प्रहर से पहले ख़त्म करे
Tuesday, 29 November 2016
Hawan
Saturday, 19 November 2016
स्वभाव आणि आजार
स्वभावाचा आणि आजारांचा संबध काय आहे ?
तर अाता आपण जाणून घेऊ की
मनाचा, भावनेचा, विचारांचा, स्वभावाचा कसा व कोठे परिणाम होतो........
१) अहंकारामुळे हाडां मध्ये ताठरता निर्माण होते.
२) स्वत:चा हट्ट पूर्ण करण्याच्या सवयीमुळे पोटाचे विकार होतात.
३) अतीराग व चिडचिडेपणामुळे यकृताला व पित्ताशयाला हानी पोहचते.
४) अती ताण व चिंतेमुळे स्वादुपिंड खराब होतो.
५) भीतीमुळे किडन्या व मूत्राशयाला हानी पोहचते.
६) कपटी वृत्तीमुळे गळ्याचे व फुफुसाचे रोग होतात.
७) आपलं तेच खरं / मी म्हणेन तीच पूर्व दिशा, अशा अट्टाहसामुळे बध्दकोष्टता होते
८) दु:ख दाबून ठेवल्याने फुफुस व मोठ्या अतड्यांची कार्यक्षमता कमी होते.
९) अधीरता, अतीअावेश, घाईगडबड अशा सवईमुळे ह्रदयाला व छोट्या अतड्याला हानी होते.
१०) स्वार्थी लोकांना सगळ्यात जास्त अजार होतात कारण त्यांना द्यायची इच्छा नसते त्यामुळे शरीराला नको असलेली धातक द्रव्ये पण नीट बाहेर टाकली जात नाहीत व रोग निर्माण होतो.
११) प्रेम/प्रेमळपणा शांती व समाधान देउन मनाला व शरीराला ताकद देते.
१२) स्मित हास्य स्वतःलाच नाही तर समोरच्याला पण आनंदी बनवते
१३) हसत खेळत राहिल्यास ताणतणाव कमी होतो.
तर मग आता आपल्या रागावर, विचारांवर, भावनेवर, अहंकारावर, स्वार्थीपणावर, नियंञण करण्याचा प्रयत्न करा. हसत, खेळत, आनंदी, समाधानी, सुखी, संतुष्ट रहा म्हणजे निरोगी व तंदुरूस्त बनाल.
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Monday, 7 November 2016
जब पापा घर आए
*जब पापा घर आए*...
सुबह उठा थोड़ी देर से ही...
देखा माॅं घर सवार रही थी।
हल्के हल्के सहलाकर मुझे
लंबी नींद से जगा रही थी।
उठकर मैं खुद की ही कामों
में मश्गुल बनता चला गया।
जो खुद को सही लगा वैसे
समय बिताता चला गया।
रोजमर्रा का स्नान, 5 मिनट ध्यान, करता हुं जलक्रीया.. मशीन समान,
सोशल app सामुहिकता मैं घीरा रहुं
चैतन्य सामुहिकता से थोड़ा अनजान
ना सिखा कुछ ,ना जाना कुछ खुद,
ना दिया आत्म उन्नति पर ध्यान
अपने समय का, अपनी शक्ति का
सिर्फ अपने लिए कर दिया अवमान
माँ ने प्यार से समझाया, ओर टोका
समयपर अपनी जिम्मेदारि को जान
जब पापा घरपर आएंगे, पता चलेगा
तांडव होगा मुश्किल मैं पडेगी जान
*Dr. Shailesh sahajayogi*
😇🙏😇🙏😇
अभी भी देर नहीं हुई...
पापा आने से पहले, करले पुरा काम जिससे आए उनके चेहरे पर मुस्कान
😇🙌🙏
Friday, 4 November 2016
आध्यात्मिक परिपक्वता
*आध्यात्मिक परिपक्वता क्या है?*
1.जब आप दूसरों को बदलने के प्रयास छोड़ के स्वयं को बदलना प्रारम्भ करें। तब आप आध्यात्मिक कहलाते हो।
2. जब आप दुसरे जैसे है, वैसा उन्हें स्वीकारते हो तो आप आध्यात्मिक हो।
3.जब आप समझते है कि हर किसी का दृष्टिकोण उनके लिए सही है, तो आप आध्यात्मिक हो।
4. जब आप घटनाओं और हो रहे वक्त का स्वीकार करते हो, तो आप आध्यात्मिक हो।
5. जब आप आपके सारे संबंधों से अपेक्षाओं को समाप्त करके सिर्फ सेवा के भाव से संबंधों का ध्यान रखते हो, तो आप आध्यात्मिक हो।
6. जब आप यह जानकर के सारे कर्म करते हो की आप जो भी कर रहे हो वो दुसरो के लिए न होकर के स्वयं के लिए कर रहे हो, तो आप आध्यात्मिक हो।
7. जब आप दुनिया को स्वयं के महत्त्व के बारे में जानकारी देने की चेष्टा नहीं करते , तो आप आध्यात्मिक हो।
8. अगर आपको स्वयं पर भरोसा रखने के लिए और आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए दुनियां के लोगों के वचनों की या तारीफों की ज़रूरत न हो तो आप आध्यात्मिक हो।
9. अगर आपने भेदभाव करना बंद कर दिया है, तो आप आध्यात्मिक हो।
10. अगर आपकी प्रसन्नता के लिए आप सिर्फ स्वयं पर निर्भर है, दुनिया पर नहीं,तो आप आध्यात्मिक हो।
11. जब आप आपकी निजी ज़रूरतों और इच्छाओं के बीच अंतर समझ के अपने सारे इच्छाओं का त्याग कर पातें है , तो आप आध्यात्मिक हो।
12. अगर आपकी खुशियां या आनंद भौतिक, पारिवारिक और सामाजिकता पर निर्भर नहीं होता, तो आप आध्यात्मिक हो।
आप सभी को इस जीवन में अध्यात्मिक परिपक्वता प्राप्त हो, यही मंगलकामनाये ॐ
सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
Thursday, 3 November 2016
दिवाली
*आज की कहानी*
सोचा आज से सोने से पहले तुम्हे एक कहानी सुनाया करु... जिससे तुम्हे तो नहीं पता... पर मुझे नींद अच्छी आएगी...
अभी के दिवाली आफिस के सहकर्मी के साथ बातचीत का वक्त मिला...वैसे तो हम काम की कम और दुनियाभर की बातें ज्यादा करते है...
उसने थोडीसी नाराजगी दर्शाते हुए कहा "क्या दोस्त.. दिवाली के वक्त दावत पर घर नहीं बुलाया"
उस वक्त मुझे पता चला यह मुहबोला दोस्त मुफ्त का चंदन घिसने की तैयारियों में जुटा है...
मैने कहा.. कि" व्हाटस अप पर तुझे मुबारक बात भी भेजी थी और दावत भी... देखी नहीं क्या? "
वह बोला" देखा इसलिए तो पूछ रहा हुं... इतने व्यंजन की फोटो भेजी थी... बुलाता तो चख भी लेता "
मैंने कहा" वह तो फारवर्ड फोटो थे... मेरे सामने के घर में जो परिवार रहता है... उन्होंने दिवाली की मुबारक बात देने के लिए भेजी थी... "
एक जमाना हुआ अपनों के गले लगे हुए... हर कोई सिर्फ तसबीर दिखाता है...
अच्छा हुआ मुबारकबात मुफ्त में होती है यहाँ पर...
वर्ना त्योहार ही नहीं रिश्ते भी खत्म हो जाते यहां पर... 😇
डॉ. शैलेशकुमार सहजयोगी 😇🙏