छोटा था जब कहते थे सब
दिखता पापा के जैसा हु।
गिरता सवरता फिर खेलता
दोस्त कहते खिलाड़ी जैसा हु।
एक्झाम के पहले पढ़ाई करता
स्कूल में लगता पढाकू जैसा हु,
अच्छे नंबर पाता गलती से तब
पडोसी कहते ज्ञानी जैसा हु।
आए मेहमान, मिलता हसके उनसे
तो मेहमान कहते प्यारा बच्चा हु।
ना बाहरी झगडा नहीं घरपर लाता
मोहल्ला कहता न्यारा बच्चा हुं।
आज पुछता हुं जब खुद से
सच में मैं किसके जैसा हुं।
अंदर बाहर कुछ भी नहीं मैं
माँ अब सिर्फ तेरे जैसा हुं।
माँ चरणों में समर्पित...
डॉ. शैलेशकुमार सहजयोगी लिखित
संक्षिप्त... सहज परिवर्तन पुस्तक से🙏😇🙏
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