पूजा के लिये कुछ महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल्स या मर्यादायें (भाग-1)....
(वरिष्ठ सहजयोगिनी श्रीमती हेमांगिनी कुलकर्णी द्वारा पूजा हेतु बताये गये दिशानिर्देश)
प्रोटोकॉल्स मियम नहीं हैं बल्कि ये दिशानिर्देश हैं जो हमें उचित और मर्यादित कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करते हैं। अतः हमें इन दिशानिर्देशों का पालन प्रेम और श्रद्धापूर्वक करना चाहिये।
हम सभी सहजयोगीजन परम पूजनीय श्रीमाताजी से अत्यंत प्रेम करते हैं। हम सभी पूरे हृदय से प्रेम और सम्मान के साथ उनके चरण कमलों में पूर्ण आदर और समर्पण के साथ पूजा अर्पित करते हैं। फिर भी कई बार हम आवश्यक प्रोटोकॉल्स या स्वानुशासन को भूल जाते हैं। पूजा के बाद श्रीमाताजी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और वह हमें आशीर्वादित करती हैं। आइये हम सब देखें कि वे कौन सी चीजें हैं जिनका पालन श्रीमाताजी की पूजा के दौरान सहजयोगियों के रूप में हम सबको करना चाहिये।
सहजयोगियों के लिये -----
1- घर से पूजा के लिये निकलते हुये हम सबको बाह्य स्नान के साथ अपना आंतरिक स्नान अवश्य कर लेना चाहिये। इसका अर्थ है कि पूजा से पहले हमें जल क्रिया करके अपने यंत्र को स्वच्छ करके आना चाहिये ताकि पूजा के वाइब्रेशन्स को हम अच्छी तरह से ग्रहण कर सकें।
2- पूजा स्थल पर, पूजा से पूर्व पंहुचने का प्रयास करना चाहिये।
3- पूजा के लिये मौसम के अनुरूप आरामदायक एवं गरिमामय वस्त्र पहन कर आंये। इसके लिये भी कुछ दिशानिर्देश दिये गये हैं। जैसे महिलाओं को सूती या सिल्क की साड़ियां पहननी चाहिये। अच्छा रहेगा कि यदि वे सूती साड़ियाँ पहन कर ही आंये। सिंथेटिक साड़ियाँ बिल्कुल भी न पहनें। युवा लड़कियाँ स्लीवलेस ब्लाउज या भिन्न-भिन्न प्रकार के परिधान न पहनें।
4- पुरूषों और युवा-शक्ति लड़कों को कुर्ता पायजामा पहन कर आना चाहिये। उनको भी सिंथेटिक कपड़े नहीं पहनने चाहिये।
5- पूजा के लिये काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिये।
6- पूजा स्थल पर जूते चप्पलों को बेतरतीब न रखें। उनको अच्छी तरह से सहेज कर रखें।
7- पूजा स्थल पर समय से पूर्व पंहुच कर पूजा मनी को काउंटर पर जमा करवा दें।
8- शांतिपूर्वक अपना स्थान ग्रहण करें। अपने साथ बैठने के लिये अपने मित्रों को न बुलायें।
9- पूजा से पहले और पूजा के दौरान बातचीत बिल्कुल न करें।
10- अपनी पानी की बोतलों के लिये प्लास्टिक के कैरी बैग न लांय। पानी की बोतलों के लिये कपड़े से बनी हुई थैलियाँ लेकर आंये। प्लास्टिक से वाइब्रेशन्स का प्रवाह रूक सकता है।
11- बच्चों को पूजा के दौरान शांतिपूर्वक बैठने के लिये कहें। उनको बचपन से ही पूजा औऱ ध्यान के दौरान शांतिपूर्वक बैठने की आदत डालें। उनको इधर-उधर भागने न दें। उनको श्रीमाताजी के प्रति प्रेम और सम्मान देना सिखायें।
12- माता-पिता को देखना चाहिये कि उनके बच्चे कहीं इधर-उधर भाग दौड़ कर अन्य सहजयोगियों तथा गणों को कष्ट तो नहीं पंहुचा रहे क्योंकि पूजा के दौरान गण अदृश्य रूप से वहां मौजूद होते हैं।
13- पूजा के दैरान कुछ खांये पियें नहीं। ऐसा करना श्रीमाताजी का अपमान है। यदि हमारा चित्त श्रीमाताजी पर है तो हमको किसी चीज की जरूरत ही अनुभव नहीं होगी।
14- हमेशा याद रखें कि पूजा में हम श्रीमाताजी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये आये हैं। श्रीमाताजी का आशीर्वाद हमें तभी प्राप्त होगा जब हम उनके प्रति निर्विचार समाधि में पूर्ण रूपेण समर्पित रहेंगे।
15- पूजा के दौरान यदि हम निर्विचार समाधि और साक्षी भाव में हैं तो तभी हम पूजा के वाइब्रेशन्स को अच्छी तरह से ग्रहण कर पायेंगे। लेकिन यदि हम ये देखते रहें कि पूजा किस प्रकार से की जा रही है और पूजा करवाने वाला व्यक्ति क्या बोल रहा हैं ... या पूजा में ये गलत हो रहा है और वो गलत हो रहा है तो हम वाइब्रेशन्स को आत्मसात नहीं कर पायेंगे क्योंकि पूजा के लिये हमारी ध्यानगम्य स्थिति नहीं है। अतः इन चीजों की ओर बिल्कुल ध्यान न दें। जैसे ही आपको लगे कि कुछ गलत हो रहा है तो तुरंत उस चीज को श्रीमाताजी के श्रीचरणों में डाल दें। ये सब कुछ उनके सामने ही हो रहा है और वह सब कुछ जानती हैं ..... क्योंकि वह सर्वज्ञ हैं।
16- जैसे ही पूजा समाप्त हो जाय, महाप्रसाद के लिये बिल्कुल भागा दौड़ी न करें। पूजा समाप्त होने के बाद 15-20 मिनट के लिये ध्यान में बैठ कर पूजा के वाइब्रेशन्स को ग्रहण करें।
17- कृपया नये साधकों को पूजा के लिये बिल्कुल भी न लेकर आंय। ऐसा भी देखा गया है कि पिछले दिन किसी ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया और आप उस व्यक्ति को अगले दिन पूजा के लिये ले आते हैं। याद रखें कि ऐसा करके हम श्रीमाताजी को ही कष्ट पंहुचा रहे हैं। पूर्व के दिनों में किसी भी साधक को पूजा के लिये 6 माह या इससे अधिक के पश्चात ही पूजा में भाग लेने की अनुमति दी जाती थी।
18- महाप्रसाद अत्यंत मूल्यवान होता है। इसको भाजन नहीं समझा जाना चाहिये। लोग महाप्रसाद को प्लेट भर कर ले लेते हैं और बाद में इसको खा नहीं पाते हैं। वे बचे हुये महाप्रसाद को प्लेट में ही छोड़ देते हैं और फिर डस्टबिन में डाल देते हैं। सबसे पहले तो ये श्रीमाताजी का अपमान है क्योंकि प्रसाद को उनके द्वारा ही वाइब्रेट किया जाता है और दूसरा ये अन्न या खाने का अपमान है।
19- यदि हम पूजा के दौरान पूर्णतया श्रीमाताजी के साथ एकाकारिता में हों तो न तो हमें भूख और न प्यास का अनुभव होता है। उस समय हम पूर्णानंद की स्थिति में रहते हैं। अतः महाप्रसाद का सम्मान करें।
20- पूजा के समापन के पश्चात भी बिल्कुल भी बातचीत न करें। घर पंहुचने तक ध्यानाव्सथा में रहें। घर पंहुच कर भी इसी अवस्था में रह सकें तो पूजा के वाइब्रेशन्स को अच्छी तरह से ग्रहण कर सकेंगे।
21- पूजा स्थल से बाहर निकलते हुये बंधन लेना बिल्कुल न भूलें।
22- पूजा स्थल पर पंहुचने के बाद अपने मोबाइल फोन को स्विच ऑफ करना न भूलें।
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